________________
कलि पौष एकादशि आई, तब बारह भावन भाई | अपने कर लौंच सु कीना, हम पूजें चरन जजीना ||
ओं ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥३।
कलि चैत चतुर्थी आई, प्रभु केवलज्ञान उपाई | तब प्रभु उपदेश जु कीना, भवि जीवन को सुख दीना ||
ओं ह्रीं चैत्राकृष्ण-चतुर्थ्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।४।
सित-सातें-सावन आई, शिव-नारि वरी जिनराई | सम्मेदाचल हरि माना, हम पूजें मोक्ष-कल्याना ||
ओं ह्रीं श्रावणशुक्ल-सप्तम्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।५।
जयमाला
(छन्द मत्तगयन्द) पारसनाथ जिनेंद्र तने वच, पौन भखी जरते सुन पाये | कर्यो सरधान लह्यो पद आन, भये पद्मावति-शेष कहाये || नाम-प्रताप टरें संताप, सुभव्यन को शिवशर्म दिखाये | हो विश्वसेन के नंद भले! गुण गावत हैं तुमरे हर्षाये ||
(दोहा) केकी-कंठ समान छवि, वपु उतंग नव-हाथ | लक्षण उरग निहार पग, वंदू पारसनाथ ||१||
(मोतियादाम छन्द) रची नगरी छह मास अगार, बने चहुँ गोपुर शोभ अपार | सु कोट-तनी रचना छवि देत, कंगूरन पे लहकें बहु केत ||२|| बनारस की रचना जु अपार, करी बहु भाँति धनेश तैयार | तहाँ विश्वसेन नरेन्द्र उदार, करे सुख वाम सु दे पटनार ||३|| तज्यो तुम प्राणत नाम विमान, भये तिनके वर नंदन आन |
30