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पूजा विधि
१. पूजन-प्रतिज्ञा व स्वस्ति (मंगल) याचनाः खड़े रह कर कायोत्सर्ग करें व विनय पाठ पढ़ें। आगे पुस्तक में दिए क्रम से अनादि-मूल-मंत्र, चत्तारि दंडक,. अपवित्रः पवित्रो वा.... के मंद मधुर स्वर में गायन कर पुष्प चढ़ायें।क्रमशः पंचकल्याणक अर्घ्य, पंच-परमेष्ठी अर्घ्य, श्रीजिनसहस्रनाम अर्घ्य और जिनवाणी के अर्घ्य चढ़ायें । पूजन-प्रतिज्ञा पाठ पढ़ पुष्पांजलि करें। चौबीस तीर्थंकर स्वस्ति विधान (श्री वृषभो नः...), पुनः परम-ऋषि स्वस्ति विधान (नित्याप्रकम्पाद....)पूरे पूरे पढ़ते जाएँ व स्वस्ति शब्द उच्चारण करते ही पुष्प चढाते जाएँ।
२. पूजा प्रारंभ : जिस पूजनीय (मूल नायक, चौबीस तीर्थंकर आदि ) की पूजा करनी हो, कम से कम नौ अखंड पष्प (केशरिया चावल अथवा लौंग) दोनों हथेलियों के बीच, बंद कमल के आकार में रख कर. आह्वानन-मन्त्र बोलते हुए आकाश से उन का आह्वान किया जाता है (पुकारा जाता है) ठोने में उन पुष्पों को स्थापन-मंत्र बोलते हुए चढाना उन के स्थापन (विराजने) का भाव देता है, और सन्निधिकरण-मंत्र बोलना उन्हें हृदय में बसाने का भाव देता है। तब ही अष्ट-द्रव्यों से पूजा आरम्भ होती है| (ये तीन मंत्र अष्टम विभक्ति में होते हैं, शेष द्रव्यों के अर्पण-मंत्र चतुर्थी विभक्ति में होते हैं | बोलते समय यहाँ विशेष सावधानी आवश्यक है)।
नित्य-पूजन के नियम की पर्ति के लिए सर्व प्रथम श्री जिनेन्द्र देव की, शास्त्रजी की. व गरुवर (गणधर देव अथवा आचार्य-उपाध्याय-साधू ) की भक्ति पूर्वक पूजन अलग-अलग अथवा एक साथ समुच्चय-पूजा के रूप में की जाती है| समुच्चय पूजा हेतु अनेकों वैकल्पिक रचनाएं प्रचलन में हैं जैसे, प्रथम देव.....(द्यानत राय जी), देवशास्त्र-गुरु नमन करि.....(सच्चिदानंदजी), केवल रवि .....(युगलजी), नव-देवता पूजा (आ. ज्ञानमती जी)|
३. अष्ट-द्रव्यों से पूजनः इस में क्रमशः जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप एवं फल आदि द्रव्यों के पद एक एक कर गाते हैं, व उसी द्रव्य का मंत्र बोल कर वह द्रव्य चढ़ाते हैं| इसी विधि से अर्घ्य भी चढाते हैं और पूजित पात्र की गुणमाल (जयमाला) गा कर पूर्णार्घ्य भी। तीर्थंकरों की पूजाओं में उन के पाँचों कल्याणकों के स्मरण-भाव से प्रत्येक के अर्घ्य भी चढ़ाये जाते हैं| प्रत्येक पूजा के अंत में आशीर्वाद-मंत्र पढ़ कर पूजित प्रभु के आशीर्वाद स्वरूप स्वयं पर पुष्प-क्षेपण किया जाता है| विभिन्न पूजाओं का क्रम हर स्थान एवं समय अनुसार भिन्न हो सकता है।
अष्ट-द्रव्य चढाते हुए क्या भावना करें प्रत्येक द्रव्य भगवान के समक्ष अर्पित करते हए मन-रूपी सागर में निम्न प्रकार भक्ति की लहरें उठनी चाहिए अर्थात् भावना भानी चाहिए -
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