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Yaha vatsalya hṛdaya mēṁ mērē, abhinava-jyōti jagāyē || Ōm hrīm śrīviṣṇukumāramunayē anarghyapada-prāptayē arghyam nirvapāmīti svāhā | 9 |
जयमाला
Jayamālā
(दोहा)
श्रावण शुक्ला पूर्णिमा, यति-रक्षा-दिन जान |
रक्षक विष्णु-मुनीश की, यह गुणमाल महान् ||१|| (dohā)
śrāvana-śuklā pūrnimā, yati- raksā-dina jāna | Rakşaka visnu-munīśa kī, yaha gunamāla mahān || 1 ||
(पद्धरि छन्द)
जय योगीराज श्री विष्णु धीर, आकर जिन्ह हरदी साधु-पीर | हस्तिनापुर वे आये तुरंत कर दिया विपत का शीघ्र अंत ||२|| वे ऋद्धि सिद्धि-साधक महान्, वे दयावान वे ज्ञानवान | धर लिया स्वयं वामन - सरूप, चल दिये विप्र बनकर अनूप || ३ || पहुँचे बलि-नृप के राजद्वार, वे तेज-पुंज धर्मावतार | आशीष दिया आनंदरूप, हो गया मुदित सुन शब्द भूप ||४||
IT वर माँगो विराज, दूँगा मनवाँछित द्रव्य आज | पग-तीन भूमि याची दयाल, बस इतना ही तुम दो नृपाल ||५|| नृप हँसा समझ उनको अजान, बोला यह क्या लो और दान |
इससे कुछ इच्छा नहीं शेष, बोले वे ये ही दो नरेश || ६ || संकल्प किया दे भूमि-दान, ली वह मन में अतिमोद मान | प्रगटाई अपनी ऋद्धि-सिद्धि, हो गई देह की विपुल - वृद्धि ||७||
दो पग में नापा जग समस्त, हो गया भूप-बलि अस्त-व्यस्त | इक पग को दो अब भूमिदान, बोले बलि से करुणा - निधान ||८|| नतमस्तक बलि ने कहा अन्य, है भूमि न मुझ पर हे अनन्य |
रख लें पग मुझ पर एक नाथ, मेरी हो जाये पूर्ण बात ||९|| कहकर 'तथास्तु' पग दिया आप, सह सका न बलि वह भार-ताप |
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