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(Doha) Yadyapi yud'dha nahim kiyo, nahim rakhe asi-tiral Parama ahimsaka ācarana, tadapi banē mahāvīra ||
पद्धरि छन्द हे! मोह-महादल-दलन-वीर, दुर्धर तप-संयम-धरण धीर | तुम हो अनन्त आनन्दकन्द, तुम रहित सर्व जग दंद-फंद || अघहरण-करन मन-हरनहार, सुख-करन हरण-भवदुख अपार | सिद्धार्थ तनय तन रहित देव, सुर-नर-किन्नर सब करत सेव ||
मतिज्ञान रहित सन्मति जिनेश, तुम राग-द्वेष जीते अशेष | शुभ-अशुभ राग की आग त्याग, हो गये स्वयं तुम वीतराग || षद्रव्य और उनके विशेष, तुम जानत हो प्रभुवर अशेष |
सर्वज्ञ वीतरागी जिनेश, जो तुम को पहिचानें विशेष || वे पहिचानें अपना स्वभाव, वे करें मोह-रिपु का अभाव | वे प्रगट करें निज-पर-विवेक, वे ध्यावें निज शुद्धात्म एक || निज आतम में ही रहें लीन, चारित्र-मोह को करें क्षीण |
उनका हो जाये क्षीण राग, वे भी हो जायें वीतराग || जो हुए आज तक अरीहन्त, सबने अपनाया यही पंथ |
उपदेश दिया इस ही प्रकार, हो सबको मेरा नमस्कार || जो तुमको नहिं जाने जिनेश, वे पायें भव-भव-भ्रमण क्लेश |
वे माँगें तुमसे धन समाज, वैभव पुत्रादिक राज-काज || जिनको तुम त्यागे तुच्छ जान, वे उन्हें मानते हैं महान | उनमें ही निशदिन रहें लीन, वे पुण्य-पाप में ही प्रवीन || प्रभु पुण्य-पाप से पार आप, बिन पहिचाने पायें संताप | संतापहरण सुखकरण सार, शुद्धात्मस्वरूपी समयसार || तुम समयसार हम समयसार, सम्पूर्ण आत्मा समयसार | जो पहिचानें अपना स्वरूप, वे हों जावें परमात्मरूप ||
उनको ना कोई रहे चाह, वे अपना लेवें मोक्ष राह | वे करें आत्मा को प्रसिद्ध, वे अल्पकाल में होयं सिद्ध ||
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