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दिव्य-पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। (निम्नलिखित जाप्य-मंत्र का 9 या 27 या 108 बार जाप करें।)
___Divya-puspanjalim ksipét.. (Nimnalikhita jāpya-mantra kā 9 yā 27 yā 108 bāra jāpa karēm.)
ओं ह्रीं श्री अरिहंतधाचार्योपासिद्ध्यायसर्वसाधूजिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-जिनचैत्यालयेभ्यः नमः। om hrīm śrī arihanta-siddh-ācāryāpādhyāya-sarvasādhūjinadharma-jināgama-jinacaitya-jinacaityālayēbhya: Nama
जयमाला Jayamālā
(सोरठा छन्द) चिच्चिंतामणि रत्न, तीन लोक में श्रेष्ठ हो | गाऊँ गुण मणिमाल, जयवंते वरतों सदा ||१||
(Soratha chanda) Ciccintāmaņi ratna, tīna loka mēs śrēștha ho || Gaum guna manimala, jayavanté varatom sada ||1||
(चाल-हे दीनबंधु श्रीपति...) जय जय श्री अरिहंत देव देव हमारे | जय घातिया को घात सकल जंतु उबारे || जय जय प्रसिद्ध सिद्ध की मैं वंदना करूँ | जय अष्ट-कर्म-मुक्त की मैं अर्चना करूँ ||२||
आचार्यदेव गुण छत्तीस धार रहे हैं | दीक्षादि दे असंख्य भव्य तार रहे हैं ||
जयवंत उपाध्याय गुरु ज्ञान के धनी | सन्मार्ग के उपदेश की वर्षा करें घनी ||३||
जय साधु अठाईस गुणों को धरे सदा | निज आत्मा की साधना से च्युत न हों कदा ||
ये पंच परमदेव सदा वंद्य हमारे |
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