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Apanē svarūpa kī prāpti-hētu, hē prabhu! Mainnē kī hai pūjana Tab tak caranom mem dhyan rahe, jab tak na prapt hi mukti sadan ||11||
ओं ह्रीं श्री अरिहंतसिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु पञ्चपरमेष्ठिभ्यः जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
Om hrīm śrī arihantasiddhācāryāpādhyāya-sarvasādhu pañcaparamēșthibhya: Jayamālā-pārņārghyam nirvapāmīti svāhā |
हे! मंगलरूप अमंगल-हर, मंगलमय मंगलगान करूँ |
मंगलों में प्रथम श्रेष्ठ मंगल, णमोकार मंत्र का ध्यान करूँ || Hē! Mangalarūpa amangala-hara, mangalamaya mangalagāna karūí Mangalôm mēm pratham śrēșth mangal, namākār mantra kā dhyān
karūñ |
।इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। || Ityāśīrvāda: Puspāñjalim kşipēt ||
नवदेवता-पूजा Navadevata - Puja
(गीता छन्द) अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु त्रिभुवन-वंद्य हैं | जिनधर्म जिन-आगम जिनेश्वर, मूर्ति जिनगृह वंद्य हैं ||
नवदेवता ये मान्य जग में, हम सदा अर्चा करें |
आह्वान कर थापें यहाँ, मन में अतुल-श्रद्धा धरें || ओं ह्रीं श्री अरिहंत सिद्ध आचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य जिनचैत्यालय समूह!
अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननम्) ओं ह्रीं श्री अरिहंत सिद्ध आचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य जिनचैत्यालय समूह!
__ अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठः! ठ!: (स्थापनम्) ओं ह्रीं श्री अरिहंत सिद्ध आचार्योपाध्याय सर्वसाधू जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य जिनचैत्यालय समूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट! (सन्निधिकरणम)
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