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Om hrim sri palicaparamāsthibhya: Moksaphala-prāptaye phalam
nirvapāmīti svāhā || 8||
जल चंदन अक्षत पुष्प दीप, नैवेद्य धूप फल लाया हूँ |
अब तक के संचित कर्मों का, मैं पुंज जलाने आया हूँ || यह अर्घ्य समर्पित करता हूँ, अविचल अनर्घ्यपद दो स्वामी |
हे पंच परम परमेष्ठी प्रभु, भव-दुःख मेटो अंतर्यामी || ओं ह्रीं श्री पञ्चपरमेष्ठिभ्यः अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।९।
Jala candana akşata puspa dīpa, naivēdya dhūpa phala lāyā hūñ||
Aba taka kē sancita karmām kā, mais puñja jalānē āyā hūñ || Yaha arghya samarpita karatā hūs, avicala anarghyapada do svāmī| Hē pañca parama paramēsthī prabhu, bhava-du:Kha mēto antaryāmī || Om hrīm śrī pañcaparamēşthibhya: Anarghyapada-prāptayē
arghyam nirvapāmīti svāhā ||91||
जयमाला Jayamālā
(ज्ञानोदय छन्द) जय वीतराग सर्वज्ञ प्रभो, निज-ध्यान लीन गुणमय अपार | अष्टादश दोष रहित जिनवर, अरिहन्त देव को नमस्कार ||१||
अविकल अविकारी अविनाशी, निजरूप निरंजन निराकार | जय अजर अमर हे! मुक्तिकंत, भगवंत सिद्ध को नमस्कार ||२||
छत्तीस सुगुण से तुम मंडित, निश्चय रत्नत्रय हृदय धार | हे! मुक्तिवधू के अनुरागी, आचार्य सुगुरु को नमस्कार ||३||
एकादश-अंग पूर्व-चौदह के, पाठी गुण पच्चीस धार | बाह्यांतर मुनि-मुद्रा महान्, श्री उपाध्याय को नमस्कार ||४||
व्रत समिति गुप्ति चारित्र प्रबल, वैराग्य भावना हृदय धार | हे! द्रव्य-भाव संयममय मुनिवर, सर्व साधु को नमस्कार ||५|| बहु पुण्य संयोग मिला नरतन, जिनश्रुत जिनदेव चरण दर्शन |
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