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Pada-anarghya kī prāpti kō aba, hō sadā svātama-ramaṇa || Pāda-padmōṁ mēṁ guru kē, hōṁ mērē śata-śata-namana | Mukti mila jā’ē mujhe bhī, isali'ē karatā yatana || Om hrim śrīkundakundācāryasvāminē anarghyapada-prāptayē arghyam nirvapāmīti svāhā ||9||
जयमाला
Jayamālā
(जोगीरासा छन्द)
साक्षात् सीमन्धर-वाणी, सुनी जिन्होंने क्षेत्र - विदेह | योगिराज सम्राट् स्वयं वे, ऋद्धिधारी गए सदेह || सरस्वती के वरदपुत्र वे, उनकी प्रतिभा अद्भुत सीमंधर - दर्शन में उनकी, आत्मशक्ति ही सक्षम थी || चौरासी पाहुड़ लिखकर के, जिन - श्रुत का भंडार भरा | ऐसे ज्ञानी-ध्यानी मुनि ने, इस जग का अज्ञान हरा || श्री कुंदकुंद आचार्य यदि, हमको सुज्ञान नहीं देते | कैसे होता ज्ञान निजातम, हम भी अज्ञानी रहते || बहुत बड़ा उपकार किया जो, परम्परा श्रुत रही अचल | वर्ना घोर-तिमिर मोह में ही, रहते जग में जीव सकल || ‘समयसार' में परमातम, बनने का साधन-सार भरा | 'पंचास्तिकाय' में श्री गुरुवर ने, द्रव्यों का निर्देश करा ||
'प्रवचनसार' रचा स्वामी ने, भेदज्ञान बतलाने को | 'मूलाचार' लिखा मुनि - हित, आचार-मार्ग दर्शाने को || 'नियमसार' अरु ‘रयणसार' में, आत्मज्ञान के रत्न महान | सिंह गर्जना से गुरुवर की. हुआ प्राणियों का कल्याण ||
हैं उपलब्ध अष्टपाहुड़ ही, लेकिन वे भी हैं अनमोल | ताड़पत्र पर हस्तलिखित हैं, कौन चुका सकता है मोल || भद्रबाहु अन्तिम श्रुतकेवलि, क्रमश: उनके शिष्य हुए | शास्त्रदान और माँ की लोरी, से ही स्वाश्रित मुनि हुए || वीर समान ही पाँच नाम हैं, इन महिमाशाली गुरु T
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