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श्री पार्श्वनाथ जिन पूजा Sri Parsvanātha Jina Puja
(शंभु छन्द) हे पार्श्वनाथ! हे पार्श्वनाथ! तुमने हमको यह बतलाया | निज पार्श्वनाथ में थिरता से, निश्चय सुख होता सिखलाया ||
तुमको पाकर मैं तृप्त हुआ, ठुकराऊं जग की निधि नामी | हे रवि सम स्वपर प्रकाशक प्रभु! मम हृदय विराजो हे स्वामी || ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट! (आह्वाननं)
ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठः ठः! (स्थापनम्) ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्रा मम सन्निहितो भव! भव! वषट! (सन्निधिकरणम्)
(Sambhu chanda) Hē pārsvanātha! Hē pārsvanātha! Tumanē hamako yaha batalāyā| Nija pārsvanātha mēm thiratā sē, niscaya sukha hotā sikhalāyā ||
Tumakā pākara mais typta hu’ā, thukarā’ūs jaga kī nidhi nāmī| Hē ravi sama svapara prakāśaka prabhu! Mama hțdaya virājā hē svāmī!
Om hrīm śrīpārsvanāthajinēndra! Atra avatara! avatara! sanvaușaț!
(Ahvānanam) Om hrim sripārsvanāthajinindra! Atra tistha! tistha! tha:! tha:!
(Sthāpanam) Om hrī śrīpārsvanāthajinēndra! Atrā mama sannihito bhava bhava
Vasat!Sannidhikaranam
जड़ जल से प्यास न शान्त हुई, अतएव इसे मैं यहीं तनूँ | निर्मल जल-सा प्रभु निजस्वभाव, पहिचान उसी में लीन रहूँ || तन-मन-धन निज से भिन्न मान, लौकिक वाँछा नहिं लेश रखू |
तुम जैसा वैभव पाने को, तव निर्मल चरण-कमल अरचूं || ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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