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वर्जनाएं:
1. आँखों में, मुख में, अथवा अन्य अंगों में गंधोदक लगाना अविनय है और पापास्रव का कारण है|
2. अभिषेक-पूजन पूर्ण होने तक नाक, कान, मुँह में उँगली न डालें एवं नाभि से नीचे का भाग स्पर्श न करें। खून, पीव आदि निकलने पर, सर्दी- जुकाम, बुखार, चर्मरोग, सफेद दाग, दाद, खुजली एवं चोट-ग्रस्त होने पर अभिषेकादि न करें।
3. पूजन की पुस्तकों में पूजा के स्थापना-मंत्र, द्रव्याष्टक-मंत्र एवं पंच कल्याणकों के मंत्र संक्षेप में दिये होते हैं। कृपया उन मंत्रों को पूरा एवं शुद्ध पढ़ना चाहिए। ‘इत्याशीर्वाद' के बाद पुष्पांजलि क्षेपण अवश्य करें, यह प्रभु के आशीर्वाद की महान क्रिया है।
4. जहाँ नौ बार णमोकार मंत्र जपना है, वहाँ प्रत्येक णमोकार मंत्र तीन श्वास में पढ़ना चाहिए।
5. पूजन चाहे जितनी की जाएं, पर जल्दी-जल्दी नहीं गानी चाहिए। जो पूजन, विनती, पाठ, स्तोत्र आदि पढ़े जावें उनके भावों को जीवन में उतारने पर मनुष्य पर्याय की सार्थकता है |
6. पूजन क्रिया समाप्त होने पर पूजन पुस्तकों के अन्दर फंसे चांवल आदि के कणों को अच्छी तरह झाड़ कर ही पुस्तकों को यथा स्थान सहेज कर रखना चाहिए|
Jina-pratimā abhişēka va pūjana ki pātra hoti hai Kyonki jinēndra prabhu kē darśana, abhișēka, pūjana ādi sē una kē guņām kā smaraṇa ho jātā hai.
Jinabimba abhişēka: Yaha pāṁcom kalyānaka-sampanna jina-pratimā ki purusām dvārā pratidina kī jānē vālī nhavana kī kriyā hai. Isa mēs pratimājī kē āpāda-mastaka sabhī angām kā prāsuka jala sē nhavana kiyā jātā hai.
Caranābhisēka: Kinhīm viśāla pratimā'om kē abhisēka sīša kī ūñcā'ī taka macāna ādi kē binā sambhava nahīm hōtē, una kē caranām kā nhavana caranābhisēka kahalātā hai.
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