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377971970 fafe AGS (Anointment Procedure Guide)
जिन-प्रतिमा अभिषेक व पूजन की पात्र होती है क्योंकि जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन, अभिषेक, पूजन आदि से उन के गुणों का स्मरण हो जाता है।
जिनबिम्ब अभिषेकः यह पाँचों कल्याणक-सम्पन्न जिन-प्रतिमा की पुरुषों द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली न्हवन की क्रिया है। इस में प्रतिमाजी के आपाद-मस्तक सभी अंगों का प्रासुक जल से न्हवन किया जाता है।
चरणाभिषेकः किन्हीं विशाल प्रतिमाओं के अभिषेक शीश की ऊंचाई तक मचान आदि के बिना संभव नहीं होते, उन के चरणों का न्हवन चरणाभिषेक कहलाता है|
मस्तकाभिषेकः ऊपरोक्त प्रतिमाओं का मस्तकाभिषेक पर्वादि विशेष अवसरों पर किया जाता है; तथा प्रतिमाजी, मंदिरजी व क्षेत्र के अनुरक्षण व विकास के भावों से प्रायः बारह वर्षों के अंतराल से महामस्तकाभिषेक महोत्सव के विशाल आयोजन होते हैं|
पंचामृत-अभिषेक: कहीं कहीं दूध, दही, घी, इक्षुरस आदि से प्रतिमा के न्हवन की परंपरा देखने में आती है| इस में प्रासुक जल-अभिषेक में निहित अहिंसा का भाव गौण हो जाता है |
प्रक्षालन: अचल प्रतिमाओं के पूर्ण अभिषेक में जल की मात्रा अधिक लगने व गंधोदक वेदी जी में फैलने से जीवउत्पत्ति व हिंसा बचाने के भाव से, उनका केवल गीले छन्नों से प्रक्षालन होता है, तथा प्रतिमाओं की संख्या अधिक होने पर मात्र कुछ प्रतिमाओं का पूर्णाभिषेक व शेष का प्रक्षालन होता है|
शांतिधारा: यह अत्यंत अन वित्र मंत्राभिषेक है जो स्वयं व पर के पापों के प्रक्षालन कर आत्म-कल्याण व समस्त चराचर की शान्ति के भाव से जिन-प्रतिमाजी पर अखंड जल धारा करने की क्रिया है|
जन्माभिषेकः यह नित्य जिनाभिषेक से भिन्न क्रिया है जो तीर्थंकर के 'जन्म कल्याणक' अवसर पर इन्द्रादि द्वारा सम्पन्न की जाती है। जिस मूर्ति के पाँचों कल्याणक संस्कार सम्पन्न हो चुके हैं अर्थात् पूर्ण वीतरागी बन गई है, वही जिनेन्द्र-प्रतिमा कहलाती है| उस का पुनः जन्माभिषेक नहीं होता| जन्माभिषेक तो सराग अवस्था की क्रिया है। अतः जिनबिम्ब अभिषेक जन्माभिषेक नहीं है।
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