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________________ श्री बाहुबली - स्वामी आठ दरब कर से फैलायो, अर्घ बनाय तुम्हें हि चढ़ायो | मेरो आवागमन मिटाव, दाता मोक्ष के | श्री बाहुबली जिनराज दाता मोक्ष के || ओं ह्रीं श्री बाहुबली स्वामिने अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । पंच कल्याणक उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकैः | धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे कल्याणकमहं यजे || अर्थ- जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल व अर्घ्य से, धवल-मंगल गीतों की ध्वनि से पूरित मंदिर जी में (भगवान के) कल्याणकों की पूजा करता हूँ | ओं ह्रीं श्री भगवतो गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याणकेभ्यो ऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |१| तीस चौबीसी द्रव्य आठों ज् लीना है, अर्घ्य कर में नवीना है। पूजतां पाप छीना है, 'भानुमल' जोर कीना है ।। द्वीप अढ़ाई सरस राजै, क्षेत्र दश ता- विषै छाजें। सात शत बीस जिनराजै, पूजतां पाप सब भाजें।। ओं ह्रीं पंचभरत, पंचऐरावत, दशाक्षेत्रविषयेषु त्रिंशति चतुर्विंशतीनां विंशति अधिकसप्तशत तीर्थंकरेभ्यः नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा / अथवा, F 94
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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