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________________ पाँच बालयति सजि वसु-विधि द्रव्य मनोज्ञ, अरघ बनावत हैं | वसु-कर्म अनादि-संयोग, ताहि नशावत हैं || श्री वासुपूज्य मल्लि नेमि, पारस वीर अती | न[ मन-वच-तन धरि प्रेम, पाँचों बालयती || ओं ह्रीं श्री वासुपूज्य-मल्लिनाथ-नेमिनाथ-पार्श्वनाथ-महावीरस्वामी पंचबालयति-तीर्थंकरेभ्यो अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । नव-ग्रह-अरिष्ट-निवारक जल गंध सुमन अखंड तंदुल, चरु सुदीप सुधूपकं | फल आदि प्रासुक द्रव्य मिश्रित, अर्घ देय अनूपकं || रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे | पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट-नाशन हेतवे || ओं ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 92
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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