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________________ (१६) पावागढ़-सिद्धक्षेत्र (गुजरात) वसु-द्रव्य मिलाई भविजन भाई, धर्म सुहाई अर्घ करूँ | पूजा को गाऊँ हर्ष बढ़ाऊँ, खूब नचाऊँ प्रेम भरूँ || पावागिरि-वं, मन-आनंदूं, भवदुःख खंदू चितधारी | मुनि पाँच जु कोडं भवदुःख छोड़, शिवमग जोडं सुख भारी || ओं ह्रीं श्री पावागढ़-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । (१७) रेवातट स्थित सिद्धोदय-सिद्धक्षेत्र (नेमावर-म.प्र.) रेवानदी के तीर पर सिद्धोदय है क्षेत्र | इसके दर्शन-मात्र से है खुलता सम्यक् नेत्र || रावण-सुत अरु सिद्ध मुनि साढ़े पाँच करोड़ | ऐसे अनुपम-क्षेत्र को पूर्जे सदा कर जोड़ || ओं ह्रीं श्री रेवातट-स्थित सिद्धोदय-सिद्धक्षेत्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा | (१८) (ऊन) पावागिरि-सिद्धक्षेत्र म.प्र. जल-फल वसु-द्रव्य पुनीत, लेकर अर्घ करूँ | नाचूँ गाऊँ इह भाँति, भव तर मोक्ष वरूँ || श्री पावागिरि से मुक्ति, मुनिवर चारि लही | तिन इक क्रम से गिन, चैत्य पूजत सौख्य लही || ओं ह्रीं श्री पावागिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 86
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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