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(४) श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र (बिहार) जल-फल वसु-द्रव्य मिलाय, ले भर हिम-थारी | वसु-अंग धरा पर ल्याय, प्रमुदित चितधारी || श्री वासुपूज्य जिनराय, निर्वृति-थान प्रिया |
चंपापुर-थल सुखदाय, पूजू हर्ष हिया || ओं ह्रीं श्री चम्पापुर- सिद्धक्षेत्राय अनर्य पद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा |
(५) श्री पावापुरी सिद्धक्षेत्र (बिहार) जल गंध आदि मिलाय वसुविध थार-स्वर्ण भराय के | मन प्रमुद-भाव उपाय कर ले आय अ बनाय के ||
वर पद्मवन भर पद्म-सरवर बहिर पावाग्राम ही |
शिवधाम सन्मति-स्वामी पायो, जजू सो सुखदा मही ।। ओं ह्रीं श्री पावापुरी- सिद्धक्षेत्राय अनर्पद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
(६) श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्र (म.प्र.) वसु-द्रव्य ले भर थाल-कंचन अर्घ दे सब अरि हनूँ | 'छोटे' चरण जिनराज लय हो शुद्ध निज-आत्म बनूँ || नंगाऽनंगादि-मुनीन्द्र जहँ तें मुक्ति-लक्ष्मीपति भये |
सो परम-गिरवर जनँ वसु-विधि होत मंगल नित नये || ओं ह्रीं श्री सोनागिरि- सिद्धक्षेत्राय अनर्पद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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