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________________ श्री चंद्रप्रभ जिन सजि आठों-दरब पुनीत, आठों-अंग नमूं | पूजू अष्टम-जिन मीत, अष्टम-अवनि गमूं || श्री चंद्रनाथ दुति-चंद, चरनन चंद लगे | मन-वच-तन जजत अमंद, आतम-जोति जगे || ओं ह्रीं श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । श्री शांतिनाथ जिन जल-फलादि वसु द्रव्य संवारें, अर्घ चढ़ायें मंगल गाय 'बखत रतन' के तुम ही साहिब, दीज्यो शिवपुर-राज कराय || शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय | तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दुःख-दारिद जाय || ओं ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। श्री पार्श्वनाथ जिन नीर गंध अक्षतान् पुष्प चारु लीजियै | दीप धूप श्रीफलादि अर्घ तें जजीजियै || पार्श्वनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा | दीजिए निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा || ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री महावीर-जिन जल-फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरूं | गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरूं || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो || ओं ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 80
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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