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श्री आदिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - ब्र. रवीन्द्र जैन) सम्यक् तत्त्व स्वरूप न जाना नहीं यथार्थतः पूज सका,
रागभाव को रहा पोषता, वीतरागता से चूका। काल लब्धि जागी अंतर में भास रहा है सत्य स्वरूप। पाऊँगा निज सम्यक् प्रभुता, भास रही निज माँहि अनूप।
सेवा सत्यस्वरूप की, ये ही प्रभु की सेव,
निज सेवा व्यवहार से, निश्चय आतमदेव। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री आदिनाथ जिन-पूजा (रैवासा-राज.) (रचयिता - श्री लालचन्द जैन राकेश)
जल फलादि वसु द्रव्य मिलाकर, यह अर्घ्य चढ़ाया है स्वामिन्। हो अनर्घ पद प्राप्त सद्य ही, बस यही प्रार्थना है भगवन्।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ॐ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय!
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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