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श्री पार्श्वनाथ जिन निज आत्म वैभव खो चुका हूँ, क्या चढ़ाऊँ अर्घ्य मैं। प्रभु आपका ही हो चुका हूँ, आ गया हूँ शर्ण में।। श्री पार्श्वनाथ जिनेश मुझको, लीजिए अपनाइये।
आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री महावीर जिन पर को देखा मैंने, निज को ही ना परखा। अब सुख अनंत पाने, संबंध तनँ पर का।। ज्ञायक पद पा जाऊँ, होशक्ति प्रगट स्वामी।
प्रभु वीर दरश देना, शरणा दो अभिरामी।।।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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