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श्री मल्लिनाथ जिन सलिल सुच्छ शुभ गन्ध मलय मधु झंकारै। तन्दुल शशितें श्वेत कुसुम-परिमल विस्तारै।।
क्षुधा-हरण नैवेद रतन-दीपक तम नासै। धूप दहै वसु-कर्म मोख-मग फल परकासै।।
इम अघ्र करें शुभ-द्रव्य ले, रामचन्द्र कनथाल भरि। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन जल चन्दन तन्दुल चरु दीपक, धूप कुसुम फल ल्यावै। अर्घ करें चन्द्र वसुविधि ऐसे, सो शिव के सुख पावे।।
मुनिसुव्रत जिनने पद पूजें, दोष दुगुण-नव नासै।
लोक सकल कर-रेख ज्यौं देखै, ऐसौ ज्ञान प्रकारौ।। ।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री नमिनाथ जिन विमल नीर सुगन्ध चन्दन, अछित श्वेस उजास ही। वर कुसुम चरुः क्षुधा नासे, दीपतम नास ही।।
रामचन्द्र इम अर्घ कीजै, धूप फल शुभ लेय ही।
नमिनाथ जिनके चरण पूजूं, अमल गुणगण धेय ही।। ।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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