SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री शान्तिनाथ जिन वसु द्रव्य सँवारी तुम ढिग धारी, आनन्दकारी दृगप्यारी । तुम हो भवतारी, करुनाधारी, यातै थारी, शरनारी ॥ श्रीशान्ति-जिनेशं, नुतशक्रेशं, वृषचक्रेशं, चक्रेशं, हनि अरि-चक्रेशं, हे गुनधेशं दयामृतेशं मक्रेशं ॥ ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । श्री कुंथुनाथ जिन जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप ले री। फलजुत जजन करौं मन सुख धरि, हरो जगत-फेरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री अरहनाथ जिन सुचि स्वच्छ पटीरं, गंधगहीरं, तंदुलशीरं, पुष्प-चरु। वर दीपं धूपं, आनंदरूपं, ले फल-भूपं, अर्घ करूँ।। प्रभु दीनदयालं, अरि-कुल-कालं, विरद विशालं सुकुमालं। हरि मम जंजालं, हे जगपालं, अरगुन-मालं, वरभाल।।। ऊँ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 33
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy