________________
रचयिता - श्री श्री वृन्दावन
श्री आदिनाथ जिन
जल-फलादि समस्त मिलायके, जजत हैं पद मंगल-गायके। भगत-वत्सल दीनदयाल जी, करहु मोहि सुखी लखि हालजी॥॥॥ ऊँ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री अजितनाथ जिन
जल-फल सब सज्जे बाजत बज्जै, गुन-गन-रज्जे मन-मज्जे । तुअ पद-जुग-मज्जै सज्जन जज्जै, ते भव-भज्जै निजकज्जै।। श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
श्री संभवनाथ जिन
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप 'धूप फल अर्घ किया। तुमको अरपों भाव भगतिधर, जै जै जै शिव- रमनि-पिया ।।
संभव-जिन के चरन-चरचतैं, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख - वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्ताय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
28