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________________ श्री नेमिनाथ-जिनेन्द्र जल-फल आदि साजि शुचि लीने, आठों दरब मिलाय | अष्टम छिति के राज करन को, जजूं अंग-वसु नाय || दाता मोक्ष के, श्री नेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के || ओं ह्रीं श्री नेमिनाथ-जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । श्री पार्श्वनाथ-जिनेन्द्र नीर गन्ध अक्षतान् पुष्प चारु लीजिये | दीप धूप श्रीफलादि अर्घ तें जजीजिये || पार्श्वनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा | दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा || ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । श्री महावीर-जिनेन्द्र जल फल वसु सजि हिम थार, तन मन मोद धरूं | गुण गाऊँ भव दधितार, पूजत पाप हरूं || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति दायक हो || ओं ह्रीं श्री महावीर-जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 24
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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