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श्री शांतिनाथ - जिनेन्द्र
जल फलादि वसु द्रव्य संवारे, अर्घ चढ़ाये मंगल गाय | 'बखत - रतन' के तुम ही साहिब, दीज्यो शिवपुर राज कराय || शांतिनाथ पंचम चक्रेश्वर, द्वादश मदन तनो पद पाय |
तिन के चरण कमल के पूजे, रोग शोक दुःख दारिद जाय || ओं ह्रीं श्री शांतिनाथ - जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री कुंथुनाथ - जिनेन्द्र
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप लेरी | फल-जुत जजन करूं मन - सुख धरि, हरो जगत् फेरी || कुंथु सुन अरज दास केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी | भव- सिन्धु पर्यो हो नाथ, निकारो बाँह-पकर मेरी ||
ओं ह्रीं श्री कुंथुनाथ - जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद - प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री अरहनाथ - जिनेन्द्र
शुचि स्वच्छ पटीरं, गंध-गहीरं, तंदुल-शीरं पुष्प चरुँ | वर दीपं धूपं, आनंद रूपं, ले फल भूपं अर्घ करूँ | प्रभु दीनदयालं, अरिकुल कालं, विरद विशालं सुकुमालम् | हनि मम जंजालं, हे जगपालं, अर-गुनमालं वरभालम् | ओं ह्रीं श्री अरहनाथ - जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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