________________
श्री अभिनंदननाथ-जिनेन्द्र अष्ट-द्रव्य संवारि सुन्दर, सुजस गाय रसाल ही | नचत रचत जजू चरन जुग, नाय-नाय सुभाल ही ||
कलुष ताप निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद हैं |
पद वंद वृंद जजे प्रभू, भव-दंद फंद निकंद हैं || ओं ह्रीं श्री अभिनंदनजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री सुमतिनाथ-जिनेन्द्र जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल सकल मिलाय | नाचि राचि शिरनाय समयूँ, जय-जय जय-जय जय जिनराय ||
हरि-हर वंदित पाप-निकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवन के राय | तुम पद पद्म सद्म-शिवदायक, जजत मुदितमन उदित सुभाय || ओं ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री पद्मप्रभ-जिनेन्द्र जल-फल आदि मिलाय गाय गुन, भगति-भाव उमगाय | जजूं तुमहिं शिवतिय वर जिनवर, आवागमन मिटाय |
पूजू भाव सों, श्रीपदमनाथ-पद सार, पूजू भाव सों | ओं ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
18