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श्री समुच्चय-चौबीसी जल फल आठों शुचिसार, ताको अर्घ करूं | तुमको अरपूं भवतार, भव तरि मोक्ष वरूं ||
चौबीसों श्रीजिनचंद, आनंदकंद सही |
पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्ष मही || ओं ह्रीं श्री वृषभादि-वीरांत-चतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्योऽनर्य पद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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