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श्री ऋषि मण्डल पूजा जल फलादिक द्रव्य लेकर अर्घ्य सुन्दर कर लिया।
संसार रोग निवार भगवन् वारि तुम पद में दिया ॥ जहाँ सुभग ऋषिमण्डल विराजै पूजि मन वच तन सदा ।
तिस मनोवांछित मिलत सब सुख स्वप्न में दुःख नहिं कदा ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशाय-समर्थाय यन्त्र सम्बन्धी परम देवाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ॥॥
सरस्वती पूजा (कविवर द्यानतराय) नयनन सुखकारी, मृदु गुनधारी, उज्ज्वल भारी, मोलधरें । शुभ गंध सम्हारा, वसन निहारा, तुम तन धारा ज्ञान करें ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई। सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै वस्त्रं निर्वपामीति स्वाहा । जल चंदन अक्षत, फूल चरु अरु, दीप धूप अति, फल लावै । पूजा को ठानत, जो तुम जानत, सो नरद्यानत सुख पावै ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई ।
सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
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