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अनुपम शांत निराकुल अक्षय पद पाऊँ । अक्षत चरण चढ़ा कर जिन पद गुण गाऊँ।। सुविधिनाथ जिनराज शरण में आ गया।
करुणासागर दयासिंधु मन भा गया || 3 ||
ऊँ ह्रीं श्रीसुविधिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
मार्दव गुण को आज पाने आया हूँ। काम विकास विनाश करने आया हूँ ।। सुविधिनाथ जिनराज शरण में आ गया। करुणासागर दयासिंधु मन भा गया || 4 ||
ऊँ ह्रीं श्रीसुविधिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
इच्छाओं की भूख मिटाने आया हूँ। रत्नत्रय नैवेद्य पाने आया हूँ ॥ सुविधिनाथ जिनराज शरण में आ गया।
करुणासागर दयासिंधु मन भा गया || 5 ||
ऊँ ह्रीं श्रीसुविधिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अंतर को आलोकित करने आ गया। मोह महाबली नाश करने आ गया || सुविधिनाथ जिनराज शरण में आ गया।
करुणासागर दयासिंधु मन भा गया || 6 ||
ऊँ ह्रीं श्रीसुविधिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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