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________________ समवसरण में नाथ आपने, सप्त तत्त्व उपदेश दिया। वृषभसेन गणधर से श्रोता, भारतराज ब्राह्मी आर्या।।6।। धर्मचक्र का किया प्रवर्तन मंगल मय जब हुआ विहार। धन्य हुआ कैलाशधाम जब, हुआ कर्म का उपसंहार।। बिना आपकी शरण जिनेश्वर, अनंत भव में भ्रमण किया। सिद्धालय को पा जाऊँ बस, इसी भाव से शरण लिया ।।7।। आज आपकी पूजा करके, मेरे मन आनंद हुआ। पुण्य कर्म का उदय हुआ औ, पाप कर्म भी मंद हुआ।। हेप्रभुवर तव पथ पर चलकर, शाश्वत सुख को पा जाऊँ । घबराया हूँ इस भव वन में, कब शिवनगरी आ जाऊँ ॥8॥ आदि तीर्थ करतार जिनेश्वर, मुक्ति के प्रभु हो आधार। दुष्कर्मो का नाश कीजिये, शीघ्र करो मेरा उद्धार।। ज्ञान नहीं है शब्द नहीं हैं, भावों की गूंथी यह माल। नमन करूँ स्वीकारो जिनवर, श्रद्धा से अर्चित जयमाल॥9॥ ऊँ ही श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। घत्ता हेप्रथम जिनेश्वर, श्री आदीश्वर, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' करो।। ॥ इत्याशीर्वादः॥
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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