SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन्म वाराणसी में प्रभु ने लिया। सुप्रतिष्ठ के गृह को पवित्र किया। ज्येष्ठ शुक्ला `की बारस तिथि गई। सर्व आनंद की ही छटा छा गई || 2 || ॐ हीं ज्येष्ठशुक्लोद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। जन्म उत्सव ही दीक्षा में बदला तभी राग पथ त्याग वैराग्य धारा भ रूप हैं निर्विकारी महाव्रत धरें। श्री सुपार्श्व प्रभुजी की जय-जय करें॥3॥ ऊँ हीं ज्येष्ठशुक्लोद्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। कृष्ण फाल्गुन की षष्ठी तिथि आ गई। नाशे च घातिया निज निधि मिल गई || हुई रचना समोसर्ण की सुखकरी। ध्वनि सुपार्श्व प्रभुवर की है हितकरी ॥4॥ ऊँ हीं फाल्गुनकृष्णषष्ठयां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। सप्तमी कृष्ण फाल्गुन की जब आ गई। वसु विधि नाशकर शिवरमा मिल गई। मोक्ष का धाम कूट प्रभास रहा। दर्श कर पा रहे यात्री शांति महा ॥ 5 ॥ ऊँ हीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। जाप्य ॐ हीं अर्हं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमो नमः। 52
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy