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जे पाया अभी तक वो नाश हुआ। आपको देख शाश्वत का भान हुआ ।। आज भावों से पूजा करूँगा प्रभो। पद अक्षय को निश्चित वरूँगा विभो ॥3॥
ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
भा रही थी मुझे काम बंध कथा। आपके दर्श से भा रही आतमा || आज भावों से पूजा करूँगा प्रभो।
शुद्ध आतम का दर्श करूँगा विभो ॥4॥
ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
भूख व्याधि मुझे नाथ तड़पा रही तृष्णा
नागिन प्रभु जो डँसी जा रही। आज भावों से पूजा करूँगा प्रभो।
अक्ष मन के विषय को तजूँगा विभो ॥5॥
ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मोह माया का तूफान भटका रहा। ज्ञान नभ में घना मेघ मंडरा रहा।
आज भावों से पूजा करूँगा प्रभो।
आप सम पूर्णज्ञानी बनूँगा विभो ॥6॥
ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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