________________
जिन वचन तिहारे, कर्म निवारे, सत्पथ मारग प्रगटाये।
अज्ञान हटायें, ज्ञान जगायें, आर कर मनहर्षाये।। अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई।
मैं पूनँ ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु आप सिद्ध हो, जग प्रसिद्ध हो, शुद्ध गंध को हम लाये। प्रभु शुद्ध बना दो, ऐसा वर दो, सिद्धालय को हम जाये।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई। मैं पूनँ ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।7।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु आप सफल हैं, जग निष्फल है, इंद्रिय सुख को ना चाहूँ। सान्निध्य तिहारा, श्रीजिन प्यारा, मोक्ष महाफल पा जाऊँ।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई। मैं पूजूं ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।8।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
आप ही मोक्षलक्ष्मी के स्वामी महा। हम दास तिहारे, आये द्वारे, सिद्धक्षेत्र में बस जायें। पद अर्घ्य चढ़ाये, शरणे आये, चन्द्रप्रभ सम बन जायें।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई।
मैं पूनँ ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।9।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यनिर्वपामीति स्वाहा।
45