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उज्ज्वल अक्षत तंदुल लेकर, द्वार आपके आया हूँ। दूर करोगे पाप बोझ से, आशा लेकर आया हूँ।। आदीश्वर जिनराज अर्चना के अक्षत स्वीकार करो।
अखंड अक्षय सुख दो मुझको, नश्वरता से दर करो।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
रोग भयंकर विषय भोग का, कहीं नहीं उपचार हुआ। विवश हो गया मारा-मारा, हार गया लाचार हुआ।
आदीश्वर जिनराज भक्ति के, सुमन यदि स्वीकारोगे।
है विश्वास अटल यह मेरा, निज सम आप बना लोगे।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
सुमेरु पर्वत जितना खाया, क्षुधा रोग ना शांत हुआ। कई समंदर रिक्त किये पर, तृषा रोग ना शमन हुआ।।
आदीश्वर जिनराज चरण में, चरु चढ़ाने आया हूँ।
पूर्ण भरोसा तुम पर स्वामी, क्षुधा मेटने आया हूँ। 5।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
छाया मिथ्या घोर अँधेरा, गिरा अँधेरे में हर बार। श्रद्धा दीपक आप जला दो, निज दर्शन कर लूँ इस बार।।
आदीश्वर जिनराज आपका, यह उपकार न भूलूँगा।
जब तक श्वास रहेगी घट में, तेरी ही जय बोलूँगा।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।