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घत्ता
चौथे तीर्थंकर, भव्य हितंकर, किस विध हम गुणमान करें। प्रभु कृपा कीजिये, ज्ञान दीजिये, तव चरणों में आन खड़े।।2।।
घत्ता
अभिनंदन स्वामी, हे जगनामी, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' करो।।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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