________________
मेरे ही मिथ्यात्व कर्म से, छाया है अंधियारा । प्रभो आपके चरण दीप से, पाऊँ मैं उजियारा ॥
हे अभिनंदन स्वामी मेरे, देहालय में आना। दर्शन देकर दुष्कर्मों से, मुझको नाथ छुड़ाना॥6॥ ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्म शत्रु से करी मित्रता, इसका ही फल पाया। चउ गतियों में भ्रमण कराया, कर्मों की ये माया।।
हे अभिनंदन स्वामी मेरे, देहालय में आना। दर्शन देकर दुष्कर्मों से, मुझको नाथ छुड़ाना॥ 7 ॥ ऊँ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अशुभ भाव के कारण मैंने, कभी नहीं सुख पाया। संवर और निर्जरा द्वारा, शिवपथ पाने आया ॥
हे अभिनंदन स्वामी मेरे, देहालय में आना। दर्शन देकर दुष्कर्मों से, मुझको नाथ छुड़ाना॥ 8 ॥ ऊँ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभो आपके दर्शन पाकर, जिन दर्शन ना पाया। सिद्धक्षेत्र का आसन पाने, अर्घ्य सजा के लाया ॥ हे अभिनंदन स्वामी मेरे, देहालय में आना। दर्शन देकर दुष्कर्मों से, मुझको नाथ छुड़ाना॥9॥ ऊँ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
22