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आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा ॥8॥ मिथ्यातम हट कया दीप सम्यक् जला। श्री गुरु की शरण से ही बंधन टला।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा । आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥9॥ फिर प्रथम स्वर्ग में सिंहकेतु हुये । देव फिर विद्याधर से मुनिव्रत लिये || वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा ।
आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा ॥10॥ स्वर्ग सप्तम से राजा हरिषेण हुये। फिर महाशुक्र से राजपुत्र हुये ।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा ।
आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥11॥ स्वर्ग द्वादश गये नंद राजा हुये। दीक्षा लेकर तीर्थंकर की सत्ता लिये || वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा ।
आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥12॥ सोलवें स्वर्ग से माँ को सपने दिये । माता त्रिशला के नैन सितारे हुये ।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा ।
आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा ॥13॥ धन की वृद्धि से श्री वर्द्धमान हुये। मेरु पर्वत दबाया तो वीर हुये ।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा । आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा ॥14॥ मुनि संजय विजय मन में शंकित हुये। देखकरबाल जिन को निःशंकित हुये ।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा ।
आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥15॥
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