________________
निज आत्म वैभव खो चुका हूँ, क्या चढ़ाऊँ अर्घ्य मैं। प्रभु आपका ही हो चुका हूँ, आ गया हूँ शर्ण में ।। श्री पार्श्वनाथ जिनेश मुझको, लीजिए अपनाइये। आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये||9||
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
सखी छंद
वैशाख कृष्ण दिन पावन, द्वितीया तिथि है मन भावन। गर्भस्थबाल जिन आभा, से हुई नगर में शोभा।
पितु अश्वसेन हर्षित हे, सारा परिवार मुदित है। प्रभु प्राणत स्वर्ग विहाये, छप्पन देवी गुण गाय॥1॥
ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वदी पौष ग्यारसी आई, शुभ जन्म लिया जिनराई। ऐरावत गज ले आये, निज गोद इंद्र बैठाये ||
प्रभु बनकर आये सूरज, जग तरसे पाने पद रज। वाराणसी नगरी प्यारी, प्रभु जन-जनके मन हारी || 2 |
ऊँ ह्रीं पौषकृष्णएकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जन्मोत्सव खुशियाँ छाई, तब जाति स्मृति हो आई। वैराग्य सहज मन भाया, लौकांतिक ने गुण गाया।। विमलाभ पालकी चढ़के, अश्वत्थ वनी सुर पहुँचे।
जिन दीक्षा है सुखकारी, भवि जीवों को हितकारी ॥3॥
ऊँ ह्रीं पौषकृष्ण एकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अग्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
175