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द्रव्यार्पण
गीता छंद क्षेरोदधि सम क्षीर जल मैं, ला नहीं सकता प्रभो। हे क्षीरसागर नाथ तुम हो, क्षारसागर मैं प्रभो।।
श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, जन्म रोग नशाइये।
आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भवताप से मैं जल रहा हूँ, और जलता जा रहा। क्या हो गया मुझको स्वयं को, और छलता जा रहा।।
श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, भवाताप नशाइये।
आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
सब नाशवान पदार्थ को मैं, स्थिन बनाना चाहता। शाश्वत अनुपम तत्त्व हूँ मैं, शब्द से ही जानता।।
श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, दान अक्षय दीजिये।
आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
भोगे अनेकों भोग फिर भी, चाह यह जाती नहीं। यह वासना की आग जिनवर, अब सही जाती नहीं।
श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, ब्रह्म पदवी दीजिये।
आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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