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जड़ द्रव्यों की चिंता में ही जीवन चिता बनाई। शीत द्रव्य का लेप किया पर शांति आप में पाई है।।
बावनचंदन ले आया हूँ भवाताप प्रभु नाश करो।
नमिनाथ प्रभु दर्शन देकर, ज्ञान वेदी पर वास करो।।2। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
आयुपल-पलघटती रहती मृत्यु से भय भारी है। अक्षयपुर का वासी होकर नश्वर का अभिलाषी है।। अतः आज भावों से अक्षत लाया हूँ भव नाश करो।
नमिनाथ दर्शन देकर, ज्ञान वेदी पर वास करो।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
निज स्वभाव की गंध मिली ना, पुष्प सुगंधी लाये हैं।
तन के सुंदर आकर्षण में नरकों के दुःख पाये हैं।। नाथ मुझे निष्काम बना दो काम बाण का नाश करो।
नमिनाथ प्रभु दर्शन देकर, ज्ञान वेदी पर वास करो।।4।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
रसना की लोलुपता में ही शुद्धि का ना ध्यान रखा। स्वातम रस का स्वाद लिया ना व्रत संयम से दूर रहा।। निराहार जिन आप स्वभावी क्षुधा रोग मम नाश करो।
नमिनाथ प्रभु दर्शन देकर, ज्ञान वेदी पर वास करो।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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