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श्री मल्लिनाथ जिन पूजन
स्थापना
चौबीला छंद बहुत बुलाया मैंने भगवन्, अब मैं ही खुद आऊँगा। नहीं सुनाया अब तक तुमको, अब निज व्यथा सुनाऊँगा।।
सुनकर मेरी व्यथा कथा को, है विश्वास पुकारोगे। अनंत दुख से व्याकुल मुझको, भव से पार लगाओगे।। मल्लिनाथ है नाम तुम्हारा, दयासिंधु कहलाते हो।
श्रद्धा से जो भक्त पुकारे, उसके हृदय समाते हो।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
आडिल्ल छंद ज्ञान कलश में शुद्ध नीर निर्मल लिया। मिथ्यातम धोने हेतु पद धार किया।। मल्लिनाथ जिनवर के दर्शन मैं करूँ।
पूजन करने जन्म रोग को मैं हरूँ।।1। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
अनंत युग का प्यासा ज्ञान पिपासा है। शांति शाश्वत मुझको मिलेगी आशा है।। मल्लिनाथ जिनवर के दर्शन मैं करूँ। पूजन करके भवाताप को मैं हरूँ।।2।।
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