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नश्वरतन के अनुकूल, बहुविधकर्म करे । शाश्वत आतम को भूल, रूप अनेक धरे॥ अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया। हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया॥4॥
ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
यह पुष्पांजलि सुखकार, शील स्वभाव जगे। भव सिंधु के उस पार, मेरी नाव लगे।
अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया। हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया ॥5॥
ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
यह चरु करूँ मैं भेंट, ऐसा वर देना । क्षुध् व्याधि पूर्ण हो नष्ट, ऐसा कर देना।। अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया। हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया॥5॥
ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सूरज उगते ही प्रात, तम को विनशाये। यह दीप समर्पित आज, आतम उजियारे।। अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया।
हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया॥6॥
ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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