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जब जेठ वदी चौदस थी, तब पाई शिव लक्ष्मी थी। संग नौ सौ थे मुनिराया, गिरि कूट कुंदप्रभ भाया।।
प्रभु अष्टम वसुधा पाये, हम भी शिव आस लगाये।
सम्मेद शिखर की जय-जय,श्री शांतिनाथ की जय-जय।।5।। ऊँ ही ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमंडिताय ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य ऊँ हीं अहँ श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय नमो नमः।
जयमाला
दोहा जिन शासन के दीप को, प्रभो शांत अवधूत। मान मात्र से शांति हो, पाऊँ शांत स्वरूप।।1।।
ज्ञानोदय छंद शांति विधायक शांति जिनेश्वर, नगर सुरपति से वंदित हैं।
सेलहवें तीर्थंकर स्वामी, तीन लोक में पूजित हैं।।
द्वादश कामदेव चक्रीश्वर, पंचम पद के धारी हैं। बलपने से अणुव्रत धारी, प्राणी मात्र हितकारी हैं ।।2।। छह खंडों के अधिपतियों को, शीघ्र आपने जीत लिया। चक्र दिखाकर मात्र पुण्य से, चक्री का नहीं मान किया।
नव निधि चौदह रत्न प्राप्त कर, धर्मादि पुरुषार्थ कियां जाति स्मरा जब हुआ आपको, राज तजा वैराग्य लिया।3।।
रत्नत्रय साधन के द्वारा, तुमने जिनपद राज किया। चक्रवर्ती की अतुल निधि का, सहज भाव से त्याग किया।।
मंदरपुर के नृप सुमित्र ने, भक्ति से आहार दिया। क्षीरधार मुनि कर में देकर, शिवपथ को पहचान लिया।।4।।
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