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इंद्रिय मन पर जय पाई, बन गए आप मुनिराई प्रभु सार्थक नाम अजित है, हो गए आप जिनराई।।3।।
हुई समवसरण की रचना, झर रहें फूल सम वचना। सब इंद्र देव भी नत हैं, प्रभु महिमा का क्या कहना।।4।
प्रभुवर की ऐसी वाणी, यह जन-जन की कल्याणी। कब पुण्य उदय मम आये, साक्षात् सुनूँ जिनवाणी ॥5॥
वसु प्रातिहार्य की गरिमा, तीर्थंकर प्रभु की महिमा। निर्दोष परम अतिशाही, है चतुर्मुखी जिन प्रतिमा ।।6।।
प्रभु छियालीस गुण धारी, हैं अनंत गुण भंडारी। हम अल्पमति किम गायें, चरणों में है बलिहारी ॥7॥
प्रभु आप वरी शिव नारी, मैं भटक रहा संसारी। प्रभु निज सम मुझे बना लो, पा जाऊँ पद अविकारी ॥8॥
नहीं वचनों में कुछ शक्ति, बस ह्दय बसी तव भक्ति। बालक को ना ठुकराना, प्रभु देना अविचल मुक्ति ॥9॥
दोहा
अजित प्रभु की अर्चना, संचित दुरित पलाय।
दास खड़ा कर जोड़कर, नारों सकल कषाय।।10॥ ॐ हीं श्री अजितनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता
श्री अजित जिनेश्वर, हे परमेश्वर, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण’ करो।।
॥ इत्याशीर्वादः।।
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