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महामंत्र को ध्याकर ही वे, सिद्ध हुए होंगे आगे। हृदय में जो नहीं धारता, मुक्त नहीं होगा आगे।२०।
सार है यह जिनशासन का द्वादशांग का है आधार। मनमें मंत्रको ध्याता उसका, कर क्या सकता है संसार।२१।
उठते बैठते जागते सोते, करो मंत्र का नित सुमिरन। सब पापों का क्षय वो करता, होता नहीं कभी कुमरन।२२।
चौरासी लख मंत्रों का यह, बना हुआ अधिराजा है। इसीलिए तो अनादिकाल से, हर हृदय में विराजा है।२३।
परमेष्ठी वाचक यह मंत्र, निज हृदय जो धरता है। यश पूजा ऐश्वर्य को पाकर भव—सागर से तरता है।२४।
सब पापों के क्षय करने में, महामंत्र यह काफी है। मोक्ष सदन तक लेजाने में यही अकेला साथी है।२५।
देवी देवता जितने जग में, महामंत्र के किंकर हैं। पूजा भक्ति करते प्रतिदिन, सेवा में नित तत्पर हैं।२६।
सातिशयी इस महामंत्र को, जो प्राणी नित ध्याता है। विघ्न बाधा दूर हों उसकी, सुख-शांति वो पाता है।२७।
अनंत भवों के पापों को क्षय, करता है यह क्षणभर में। आधि व्याधि जगमारी को यह, हरलेता है पलभर में।२८।
परमंत्रों परंतंत्रो का वश, नहीं चले इसके आगे। भूत पिशाच डाकिनी शकिनी सुनते मंत्र सभी भागे।२९।