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णमोकार माहात्म्य
अरिहंत वही होता है जो, चार घातिया करता क्षय। अघाति कर्म का सर्वनाश कर, सिद्ध प्रभु होते अक्षय।१।
सर्व संघ को अनुशासन में, रखते हैं आचार्य प्रभु। मोक्षमार्ग का पाठ पढ़ाते , कहलाते उपाध्याय विभु।२।
अट्ठाईस मूल गुणों का नित, पालन करते हैं मुनिजन। त्रियोग सहित भक्तिभाव से, नमन सभी करते बुधजन।३।
पंच पद पैंतीस अक्षर में, ब्रह्माण्ड समाया है। 'भारतीय' जैनाजैनों को, यही मंत्र नित भाया है।४।
त्रियोग सहित जो भक्तिभाव से, महामंत्र को करे नमन। वज्र पाप—पर्वत का जैसे, क्षण में कर देता विघटन।५।
तीन लोक में महामंत्र यह, सर्वोपरि है सर्वोत्कृष्ट । अद्भुत है अनुपम है यह, वैभव है इसका प्रकृष्ट ।६।
पाताल मध्य व ऊर्ध्वलोक में, महामंत्र सुख का कारण। उत्तम नरभव देवगति अरू, पंचम गति में सहकारण।७।
भाव सहित जो पढ़ता प्रतिदिन, दुःखनाशक सुखकारक है। स्वर्गादिक अभ्युदय दाता, अंत मोक्ष सुखदायक है।८।
जीव जन्मते ही यदि वह इस महामंत्र को सुनता है। सुगति प्राप्त करता है यदि वो , अंत समय इसे गुनता है।९।