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पंचम काल महा दुखदाई, धर्म कर्म भूले सब भाई । अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, होय जहां पर दर्शन प्यारा ।।
उत्तर दिशा में देहरा माहीं, वहा आकर प्रभुता प्रगटाई ।। सावन सुदि दशमी शुभ नामी, आन पधारे त्रिभुवन स्वामी ।।
चिन्ह चन्द्र का लख नारी, चन्द्रप्रभु की मूरत मानी ।। मूर्ति आपकी अति उजियाली, लगता हीरा भी है जाली ।। अतिशय चन्द्र प्रबु का भारी, सुन कर आते यात्री भारी ।।
फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी, जुड़ता है मेला यहां भारी ।। कहलाने को तो शशि धर हो, तेज पुंज रवि से बढ़कर हो । नाम तुम्हारा जग में सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा ॥ राक्षस भूत प्रेत सब भागें, तुम सुमरत भय कभी न लागे ।। कीर्ती तुम्हारी है अति भारी, गुण गाते नित नर और नारी ।। जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी ।।
जो भी जैसी आश लगाता, पूरी उसे तुरन्त कर पाता ॥ दुखिया दर पर जो आते है, संकट सब खो कर जाते है ।।
खुला सभी को प्रभु द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है। अन्धा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावे ।।
बहरा भी सुनने लग जावे, पगले का पागलपन जावे ।। अखंड ज्योति का घृत जो लगावे,संकट उसका सब कट जावे ।। चरणों की रज अति सुखकारी, दुख दरिद्र सब नाशनहारी । चालीसा जो मन से धयावे, पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे ।। पार करो दुखियो की नैया, स्वामी तुम बिन नही खिवैया । प्रभु मैं तुम से कुछ नही चाहूँ, दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ ।
करूँ वंदना आपकी, श्री चन्द्र प्रभु जिनराज। जंगल में मंगल कियो, रखो हम सबकी लाज ।।
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