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पुत्र आपका भरत बतलाया, चक्रवर्ती जग में कहलाया । बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे, भरत से पहले मोक्ष सिधारे ।। सुता आपकी दो बतलाई, ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई । उनको भी विध्या सिखलाई, अक्षर और गिनती बतलाई ।
इक दिन राज सभा के अंदर, एक अप्सरा नाच रही थी । आयु बहुत बहुत अल्प थी, इस लिय आगे नही नाच सकी थी। विलय हो गया उसका सत्वर, झट आया वैराग्य उमङ कर ।। बेटो को झट पास बुलाया, राज पाट सब में बटवाया । छोड सभी झंझट संसारी, वन जाने की करी तैयारी ॥ राजा हजारो साथ सिधाए, राजपाट तज वन को धाये । लेकिन जब तुमने तप कीना, सबने अपना रस्ता लीना ॥ वेष दिगम्बर तज कर सबने, छाल आदि के कपडे पहने । भूख प्यास से जब घबराये, फल आदिक खा भूख मिटाये ॥ तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये, जो जब दुनिया में दिखलाये। छः महिने तक ध्यान लगाये, फिर भोजन करने को धाये ॥ भोजन विधि जाने न कोय, कैसे प्रभु का भोजन होय । इसी तरह चलते चलते, छः महिने भोजन को बीते || नगर हस्तिनापुर में आये, राजा सोम श्रेयांस बताए। याद तभी पिछला भव आया, तुमको फौरन ही पडगाया ॥ रस गन्ने का तुमने पाया, दुनिया को उपदेश सुनाया। तप कर केवल ज्ञान पाया, मोक्ष गए सब जग हर्षाया ॥ अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर, चांदखेडी भंवरे के अंदर । उसको यह अतिशय बतलाया, कष्ट क्लेश का होय सफाया । मानतुंग पर दया दिखाई, जंजिरे सब काट गिराई । राजसभा में मान बढाया, जैन धर्म जग में फैलाया ।। मुझ पर भी महिमा दिखलाओ, कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥
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