________________
जलज जीर सुखदास हीर हिम, नीर किरन-सम लायो।
पुँज धरत आनन्द भरत भव-दंद-हरत हरषायो।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी।
पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।31
सुमन सुमन-सम सुमणि-थाल भर, सुमनवृन्द विहसाई।
सुमन्मथ-मद-मंथनके कारन, चरचों चरन चढ़ाई।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी।
पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
घेवर बावर अर्द्ध-चन्द्र-सम, छिद्र-सहस्र विराजै।
सुरस मधुर तासों पद पूजत, रोग असाता भाज।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी।
पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
सुन्दर नेह-सहित वर-दीपक, तिमिर-हरन धरि आगे। नेह-सहित गाऊँ गुन श्रीधर, ज्यों सुबोध उर जागे।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी।
पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
82