________________
सिर के केश बढ़े जिस माँही नभचर-पक्षी बसे अपार। धन्य-धन्य इस अचल-ध्यान को महिमा सुर गावें उर-धार।।
कर्म नासि शिव जाय बसे प्रभु ऋषभेश्वर से पहले जान। अष्ट-गुणांकित सिद्ध-शिरोमणि जगदीश्वर-पद लह्यो पुमान।।
वीरव्रती वीराग्रगण्य प्रभु बाहुबली जगधन्य महान्। वीरवृत्ति के काज जिनेश्वर नमौं सदा जिन-बिंब प्रमान।।
(दोहा) श्रवनबेलगुल इन्द्रगिरि जिनवर-बिंब प्रधान। सत्तावन-फुट उतंग तनो खड्गासन अमलान।।
अतिशयवंत अनंत-बल धारक बिंब अनूप।
अर्घ्य चढ़ाय नमौं सदा जय जय जिनवर-भूप।। ॐ ह्रीं वर्तमानावसर्पिणीसमयेमुक्तिस्थान-प्राप्ताय कर्मारि विजयी - वीराधिवीर वीराग्रणी श्रीबाहुबली
स्वामिने अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
778