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उत्तम धूप सुगंध बनाकर, दश-दिश में महकावें। दशविधि-बंध निवारन-कारण, जिनवर पूज रचावें।।
परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी।
तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबली-परमयोगीन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सरस सुवर्ण सुगंध अनुपम, स्वच्छ महाशुचि लावें।
शिवफल कारण जिनवर-पद की, फलसों पूज रचावें।। ॐ ह्रीं श्री बाहुबली-परमयोगीन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
वसु-विधि के वश वसुधा सब ही, परवश अतिदुःख पावें। तिहि दुःख दूरकरन को भविजन, अर्घ्य जिनाग्र चढ़ावे।।
परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी।
तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबली-परमयोगीन्द्राय अनर्घ्य-पद प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
जयमाला
(दोहा) आठ-कर्म हनि आठ-गुण, प्रगट करे जिनरूप।
सो जयवंतो बाहुबली, परम भये शिवभूप।। जय जय जय जगतार-शिरोमणि क्षत्रिय-वंश-अशंस महान्। जय जय जय जगजग-हितकारी दीनो जिन उपदेश प्रमाण।। जय जय चक्रवति-सुत जिनके सत-सुत जेष्ठ-भरत पहिचान। जय जय जय श्री ऋषभदेव-जिन सो जयवंत सदा जग-जान।। जिनके द्वितीय महादेवी शुचि नाम सुनंदा गुण की खान। रूप-शील-सन्पन्न मनोहर तिनके सुत बाहुबली महान्।।
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