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क्षमावणी-पूजा
छप्पय छन्द अंग क्षमा जिन-धर्म तनो दृढ़-मूल बखानो। सम्यक् रतन सँभाल हृदय में निश्चय जानो ॥ तज मिथ्या विष मूल और चित्त निर्मल ठानो।
जिनधर्मी सौं प्रीत करो सब पातक भानो ॥ रत्नत्रय गह भविक-जन,जिन-आज्ञासम चालिये।
निश्चय कर आराधना, करम-रास को जालिये ॥ ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम्) ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रय ! अत्र मम सन्निहितं भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्)
नीर सुगन्ध सुहावनो, पदम-द्रह को लाय । जन्म-रोग निरवारिये, सम्यक् रतन लहाय ॥
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर-वचन गहाय । ॐ ह्रीं 1. निशंकितांगाय नमः 2. निकांक्षितांगाय नमः 3. निर्विचिकित्सांगाय नमः 4. निर्मूढ़तायै नमः 5. उपगूहनांगाय नम: 6. स्थितिकरणांगाय नमः 7. वात्सल्यांगाय नमः 8. प्रभावनांगाय नमः
9. व्यंजन व्यंजिताय नम: 10. अर्थसमग्रयाय नमः 11. तदुभय समग्रयाय नम: 12.
कालाध्ययनाय नमः 13. उपध्यानोपन्हिताय नम: 14. विनयलब्धिसहिताय नम: 15. गुरुवादापन्हवाय नम: 16. बहुमानोन्मानाय नमः 17. अहिंसा व्रताय नम: 18. सत्य व्रताय नमः 19. अचौर्यव्रताय नम: 20. ब्रह्मचर्यव्रताय नमः 21. अपरिग्रहव्रताय नमः 22. मनोगुप्त्यै नमः 23. वचन गुप्त्यै नम: 24. कायगुप्त्यै नम: 25. ईर्यासमित्यै नम: 26. भाषा समित्यै नम: 27. एषणा समित्यै नमः 28. निक्षेपण समित्यै नम: 29. प्रतिष्ठापना समित्यै नमः
जलं निवर्पामीति स्वाहा।
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